पंडित सुंदरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय में छत्तीसगढ़ कल, आज और कल” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में देशभर के विषय विशेषज्ञ हुए शामिल

समृद्ध इतिहास को आगे बढ़ाने के लिए वर्तमान समय में हम क्या कर रहे हैं, इस विषय पर भी हमें विचार करने की जरूरत – माननीय कुलपति वी . के. सारस्वत

छत्तीसगढ़ के विकास में एकजुट होकर काम करने की जरुरत – माननीय कुलपति वी . के. सारस्वत

बिलासपुर–:पंडित सुंदरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़, बिलासपुर में “छत्तीसगढ़ राज्य के 25 वर्ष रजत जयंती समारोह” के उपलक्ष्य पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। आयोजन के उद्घाटन सत्र में विशिष्ट अतिथि सुशांत शुक्ला विधायक बेलतरा विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर एडीएन बाजपेयी कुलपति अटल बिहारी विश्वविद्यालय व अध्यक्षता प्रोफेसर वी . के. सारस्वत कुलपति पंडित सुंदरलाल शर्मा विश्वविद्यालय उपस्थित रहे।

सरस्वती वंदना व अतिथियों के परिचय उपरांत आयोजन के विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर ए.डी एन. वाजपेयी, माननीय कुलपति, अटल बिहारी विश्वविद्यालय, बिलासपुर ने “छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया” संदर्भित लाइनों से अपना उद्बोधन शुरू किया। उन्होंने कहा कि पहले के छत्तीसगढ़ और अब के छत्तीसगढ़ में बहुत अंतर है। समय के साथ देश के विकास में छत्तीसगढ़ की भूमिका बहुत बड़ी है। पुराने समय में छत्तीसगढ़ का प्रचार दुर्बल राज्यों की श्रेणी में हुआ। जिस पर उन्होंने कहा कि जिस राज्य में पंडित सुंदरलाल शर्मा, वीर नारायण सिंह, ई. राघवेंद्र राव, पंडित रवि शंकर शुक्ला जैसे साहसी और विद्वान दिए, वह राज्य कमजोर नहीं हो सकता। उन्होंने बल देते हुए कहा कि “छत्तीसगढ़ ना पहले कमजोर था, ना अब कमजोर है और आगे कभी कमजोर रहेगा।” छत्तीसगढ़ की महत्ता के संदर्भ में उन्होंने कहा कि प्रदेश में अभी भी बहुत काम करने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ के विकास के लिए हम सबको आगे आना होगा और प्रयास तेज करना होगा, जिससे देश के विकास में हमारी भूमिका ज्यादा से ज्यादा हो सके ।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री सुशांत शुक्ला, माननीय विधायक बेलतरा ने छत्तीसगढ़ को देश के 26वें राज्य के रूप में अस्तित्व में लाने वाले स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को याद करते हुए कहा कि सामान्यत : राजनीतिक निर्णय “दल” के आधार पर होते हैं लेकिन हमारे प्रदेश को बनाने का निर्णय स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी ने “दिल” के आधार पर लिया। उन्हें पता था कि छत्तीसगढ़ को पृथक राज्य बनाने के बाद उनकी सरकार नहीं बन पाएगी, लेकिन उसके बावजूद यहां की जनता के स्वाभिमान की खातिर उन्होंने यह निर्णय लिया। छत्तीसगढ़ के भविष्य को लेकर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी राज्य तब उत्कृष्ट बनता है जब वहां के नागरिक प्रयास करते हैं। हममें नवीन छत्तीसगढ़ गढ़ने के लिए नागरिक बोध होना चाहिए। सबका साथ, सबका विकास और सब का प्रयास हो तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा छत्तीसगढ़ सिर्फ हमारे देश में ही नहीं बल्कि विश्व भर में अपनी विशिष्ट पहचान गढ़ेगा।

उद्घाटन समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ. संजय अलंग सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी, रायपुर में अपने ओजस्वी उद्बोधन में कहा कि विश्वविद्यालय का मतलब डिग्री या पढ़ाई से नहीं बल्कि शोध से है। उन्होंने कहा कि हमें शोध को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना चाहिए। प्रोफेसर वी. के. सारस्वत, माननीय कुलपति, पण्डित सुन्दरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय छ.ग., बिलासपुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि अंबिकापुर से बस्तर तक संपूर्ण छत्तीसगढ़ ऋषियों की धरती रही है। ऋषि – मुनि यानी उस समय के शोध करने वाले वैज्ञानिक । उन्होंने बताया कि मतंग ऋषि, अगस्त ऋषि, गौतम ऋषि, गुरु वशिष्ठ जैसे बड़े-बड़े ऋषियों के हमारे प्रदेश में आश्रम रहे या इसे कहें रिसर्च सेंटर रहे, जिसके प्रमाण हमारे पुराणों में हैं। इन्हीं रिसर्च सेंटरों में हुए शोध से हमारे समाज को दिशा मिली, जिनके आधार पर हम विश्व गुरु बने। उन्होंने कहा कि भगवान राम ने अधिकांश समय छत्तीसगढ़ में गुजारा । बाल्यावस्था में शिक्षा ग्रहण करने के दौरान वे ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में रहे, वही युवा व्यवस्था में उन्होंने सबसे ज्यादा समय दंडकारण्य में बिताया। वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे समृद्ध इतिहास को आगे बढ़ाने के लिए वर्तमान समय में हम क्या कर रहे हैं, इस विषय पर भी हमें विचार करने की जरूरत है। उन्होंने प्रदेश व देश के विकास में एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता बताई।

स्वागत उदबोधन व विषय प्रस्तावना प्रोफेसर हीरालाल शर्मा, संयोजक ने किया वही धन्यवाद ज्ञापन श्री भुवन सिंह राज कुलसचिव, पण्डित सुन्दरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय छ.ग., बिलासपुर ने किया। उद्घाटन समारोह में कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनीता सिंह सहायक अध्यापक शिक्षा संकाय ने किया। आयोजन के दौरान अतिथि गणों द्वारा स्मारिका का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्राध्यापक गण, अधिकारी गण, कर्मचारीगण, शोधार्थी गण, शिक्षार्थी गण समेत जन सामान्य उपस्थित रहे।

इस संगोष्ठी के प्रथम सत्र का विषय छत्तीसगढ़ नामकरण: ऐतिहासिक विश्लेषण पर कार्यक्रम की अध्यक्षता सेवानिवृत्त प्रोफेसर रमेंद्र नाथ मिश्र और मुख्य वक्ता के रूप में सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक अधिकारी डॉ. संजय अलंग ने अपने विचार साझा किए। मुख्य वक्ता डॉ. संजय अलंग ने छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक महत्व को बताते हुए कलचुरी वंश, जो महिष्मती से होकर जबलपुर के तहल, कौशल प्रांत से छत्तीसगढ़ के चिल्फी घाटी से महाकौशल साम्राज्य का उद्भव हुआ, पर प्रकाश डाला। कलचुरी वंश ने देशी रियासतों को अपने में मिलाते हुए साम्राज्य बढ़ाया। श्री अलंग जी ने छत्तीसगढ़ की तीनों तरह की भूमि का उल्लेख करते हुए बताया कि तहसीलें कैसे गढ़ में परिवर्तित हुईं। तत्पश्चात छिंदवाड़ा के देवगढ़ से गोंड शासन का आना, शिवाजी के वंशज भोंसले का नागपुर में सत्ता में आना, और उनके द्वारा कौशल प्रांत के 36 स्थानों से धन लाने की परंपरा के कारण ही यह प्रदेश छत्तीसगढ़ के नाम से जाना जाने लगा। इस तरह अलंग जी ने छत्तीसगढ़ के नामकरण का ऐतिहासिक विश्लेषण कर विश्वविद्यालय के शोधार्थियों एवं शिक्षार्थियों को अवगत कराया।

अध्यक्षीय उद्बोधन में आचार्य मिश्र जी ने छत्तीसगढ़ के इतिहास के महत्व को उजागर करते हुए कहा कि 595 ईस्वी से 650 ईस्वी तक का काल स्वर्ण युग कहलाता है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ पर शोध करने के लिए उन्होंने अपने शोधार्थियों को एक-एक गढ़ शोध के लिए दिया जिससे शोधार्थियों के द्वारा पूरे छत्तीसगढ़ के गढ़ों का ऐतिहासिक अध्ययन भी पूर्ण हो गया। साथ ही आचार्य मिश्र जी ने छत्तीसगढ़ को स्थापित करने में प्रमुख व्यक्तियों के योगदान और समृद्ध संस्कृति को बताते हुए शोधार्थियों एवं शिक्षार्थियों को किताबों का अध्ययन तथा डायरी का प्रतिदिन लेखन करने की सलाह दी कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रकृति जेम्स, सहायक प्राध्यापक, शिक्षा संकाय ने किया।

संगोष्ठी के द्वितीय सत्र का विषय छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक गौरव :कल, आज और कल पर कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर प्रवीण कुमार मिश्र इतिहास विभाग, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, और मुख्य वक्ता के रूप में सेवानिवृत्त प्रोफेसर रमेंद्र नाथ मिश्र ने अपने विचार साझा किए । मुख्य वक्ता सेवानिवृत्त प्रोफेसर रमेंद्र नाथ मिश्र ने कहा कि हमारी नई पीढ़ी को छत्तीसगढ़ का इतिहास, वर्तमान एवं भविष्य के बारे में पढना चाहिए । उन्होंने कहा कि भारत एक जीवित भूमि है। मातृशक्ति का महत्व को स्पष्ट करते हुए बताया कि वैदिक काल में शिक्षा में लिंग भेद नहीं था, वैदिक संस्कृति में बाल विवाह निंदनीय माना गया है। प्रो. मिश्रा जी ने छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र सेनानियों का उल्लेख करते हुए उनके द्वारा समाज के उत्थान के लिए किए गए कार्यों की चर्चा की । स्वतंत्रता के लिए छत्तीसगढ़ द्वारा दिए गए दान का भी उल्लेख किया। साथ ही उन्होंने कहा कि इतिहास तथ्य और सत्य पर आधारित होता है। आचार्य मिश्र जी ने छत्तीसगढ़ को स्थापित करने में प्रमुख व्यक्तियों के योगदान, समृद्ध संस्कृति को बताते हुए शोधार्थियों एवं शिक्षार्थियों को किताबों का अध्ययन तथा डायरी का प्रतिदिन लेखन करने की सलाह दी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. वर्षा शशि नाथ सहायक प्राध्यापक शिक्षा संकाय ने किया ।

वही तृतीय सत्र छत्तीसगढ़ का पुरातात्त्विक एवं प्राचीन इतिहास विषय पर आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. प्रवीण कुमार पाण्डेय ने की तथा मुख्य वक्ता के रूप में श्री राहुल कुमार सिंह उपस्थित रहे। अपने व्याख्यान में प्रो. प्रवीण कुमार पाण्डेय ने छत्तीसगढ़ की पुरातात्त्विक धरोहरों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि प्रदेश की धरती हजारों वर्षों से सांस्कृतिक और ऐतिहासिक वैभव को समेटे हुए है। सिक्के, मूर्तियाँ, प्राचीन शिलालेख एवं पुरातात्त्विक अवशेष इस बात के प्रमाण हैं कि यहाँ पर प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक उन्नत सभ्यता विद्यमान रही है।
मुख्य वक्ता श्री राहुल कुमार सिंह ने अपने व्याख्यान में छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक परंपराओं, विभिन्न राजवंशों, सांस्कृतिक निरंतरता और मंदिर स्थापत्य पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि रामगढ़, सिरपुर एवं ताला जैसे स्थल न केवल पुरातात्त्विक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि वे हमारे सांस्कृतिक गौरव के प्रतीक भी हैं। सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर और पांडुका के वामन मंदिर जैसे अवशेष इस क्षेत्र की स्थापत्य कला और धार्मिक समन्वय को प्रदर्शित करते हैं। कार्यक्रम के अंत में वक्ताओं ने यह संदेश दिया कि पुरातात्त्विक स्थलों और सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण करना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। तभी हम आने वाली पीढ़ियों तक इस गौरवशाली इतिहास को पहुँचा सकते हैं।

बॉक्स : जल्द से जल्द हम देश के अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित होंगे – उप मुख्यमंत्री अरुण साव

आयोजन के वर्चुवल रूप में शामिल हुए मुख्य अतिथि श्री अरुण साव, माननीय उप मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़ शासन ने अपने उद्बोधन में कहा कि छत्तीसगढ़ का उल्लेख सभी कालों में मिलता है। छत्तीसगढ़ में प्रकृति की असीम कृपा है एक तरफ जहां बड़ी-बड़ी नदियां हैं बड़े-बड़े जंगल हैं पहाड़ है कोयले से लेकर हीरे तक का भंडार है। वहीं दूसरी तरफ उससे बढ़कर यहां के सीधे, सरल, मेहनती, ईमानदार लोग है। जो कि छत्तीसगढ़ की असली ताकत है। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद इन 25 सालों में हमारे प्रदेश में हर स्तर पर तरक्की की है। चाहे वह कृषि के उत्पादन का मामला हो, शिक्षा के स्तर का मामला हो, अधोसंरचना का मामला हो, स्वास्थ्य सुविधाओं का मामला हो । उन्होंने कहा कि विकसित छत्तीसगढ़ की कल्पना को लेकर हमारी सरकार लगातार काम कर रही है, जिसके आधार पर हम निश्चित रूप से जल्द से जल्द देश के अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित होंगे।

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